Tuesday 23 June 2015

Bhakti Bhav

मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं.
 I give the knowledge, to those who are ever united with Me and lovingly adore Me.

कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं
नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुं करे कङ्कणम्
सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे मुक्तावलिं
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिः


Kastuurii-Tilakam Lalaatta-Pattale Vakssah-Sthale Kaustubham
Naasa-Agre Nava-Mauktikam Karatale Vennum Kare Kangkannam |
Sarva-Angge Haricandanam Sulalitam Kanntthe Ca Muktaavalim
Gopa-Strii Parivessttito Vijayate Gopaala Cuuddaamannih ||

हे श्रीकृष्ण! आपके मस्तक पर कस्तूरी तिलक सुशोभित है। आपके वक्ष पर देदीप्यमान कौस्तुभ मणि विराजित है। आपने नाक में सुंदर मोती पहना हुआ है। आपके हाथ में बांसुरी है और कलाई में आपने कंगन धारण किया हुआ है। हे हरि! आपकी सम्पूर्ण देह पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ है और सुंदर कंठ मुक्ताहार से विभूषित है। आप सेवारत गोपियों के मुक्ति प्रदाता हैं। हे ईश्वर! आपकी जय हो। आप सर्वसौंदर्यपूर्ण हैं।'




No comments:

Post a Comment