Tuesday, 30 June 2015
Sunday, 28 June 2015
Yoga
अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है.
Perform your obligatory duty, because action is indeed better than inaction.
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
The mind is restless and difficult to restrain, but it is subdued by practice.
Perform your obligatory duty, because action is indeed better than inaction.
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
The mind is restless and difficult to restrain, but it is subdued by practice.
Friday, 26 June 2015
Stuti !!!
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।
भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।
Tuesday, 23 June 2015
Bhakti Bhav
मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं.
I give the knowledge, to those who are ever united with Me and lovingly adore Me.
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं
नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुं करे कङ्कणम् ।
सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलिं
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिः ॥
Kastuurii-Tilakam Lalaatta-Pattale Vakssah-Sthale Kaustubham
Naasa-Agre Nava-Mauktikam Karatale Vennum Kare Kangkannam |
Sarva-Angge Haricandanam Sulalitam Kanntthe Ca Muktaavalim
Gopa-Strii Parivessttito Vijayate Gopaala Cuuddaamannih ||
हे
श्रीकृष्ण! आपके मस्तक पर कस्तूरी तिलक सुशोभित है। आपके वक्ष पर
देदीप्यमान कौस्तुभ मणि विराजित है। आपने नाक में सुंदर मोती पहना हुआ है।
आपके हाथ में बांसुरी है और कलाई में आपने कंगन धारण किया हुआ है। हे हरि!
आपकी सम्पूर्ण देह पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ है और सुंदर कंठ मुक्ताहार से
विभूषित है। आप सेवारत गोपियों के मुक्ति प्रदाता हैं। हे ईश्वर! आपकी जय
हो। आप सर्वसौंदर्यपूर्ण हैं।'
I give the knowledge, to those who are ever united with Me and lovingly adore Me.
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं
नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुं करे कङ्कणम् ।
सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलिं
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिः ॥
Kastuurii-Tilakam Lalaatta-Pattale Vakssah-Sthale Kaustubham
Naasa-Agre Nava-Mauktikam Karatale Vennum Kare Kangkannam |
Sarva-Angge Haricandanam Sulalitam Kanntthe Ca Muktaavalim
Gopa-Strii Parivessttito Vijayate Gopaala Cuuddaamannih ||
Monday, 22 June 2015
Krishna every where!!!!
वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह
शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है.
The one who truly understands My transcendental birth and activities, is not born again after leaving this body and attains My abode.
अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं , मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ.
To those ever steadfast devotees, who always remember or worship Me with single-minded contemplation, I personally take responsibility for their welfare.
The one who truly understands My transcendental birth and activities, is not born again after leaving this body and attains My abode.
अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं , मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ.
To those ever steadfast devotees, who always remember or worship Me with single-minded contemplation, I personally take responsibility for their welfare.
Sunday, 21 June 2015
Krishna with Flute
मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना
अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं
और मैं उनके जीवन में आता हूँ.
I look upon all creatures equally; none are less dear to me and none more dear. But those who worship me with love live in me, and I come to life in them.
प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता.
A Self-realized person does not depend on anybody except God for anything.
I look upon all creatures equally; none are less dear to me and none more dear. But those who worship me with love live in me, and I come to life in them.
प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता.
A Self-realized person does not depend on anybody except God for anything.
Friday, 19 June 2015
Thursday, 18 June 2015
Wednesday, 17 June 2015
Krishna with Cow
मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है.
The power of God is with you at all times; through the activities of mind, senses, breathing, and emotions; and is constantly doing all the work using you as a mere instrument.
Lord Vishnu
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
Saturday, 13 June 2015
Message of krishna!!!
"सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और."
"Neither in this world nor elsewhere is there any happiness in store for him who always doubts."
"क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है."
"Delusion arises from anger. The mind is bewildered by delusion. Reasoning is destroyed when the mind is bewildered. One falls down when reasoning is destroyed."
"Neither in this world nor elsewhere is there any happiness in store for him who always doubts."
"क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है."
"Delusion arises from anger. The mind is bewildered by delusion. Reasoning is destroyed when the mind is bewildered. One falls down when reasoning is destroyed."
Thursday, 11 June 2015
Tuesday, 9 June 2015
Saturday, 6 June 2015
Shree Geeta Ji, click and read!!!
The abstract message of the Bhagavad Geeta is timeless and is
applicable in every facet of life. Within Srimad Bhagavad Geeta are the
answers to the perplexing of alive our real purpose in this world,
how we should act and why we suffer, or are oftentimes helpless in our
struggle for survival.
To understand Srimad Bhagavad Geeta one must enter into the spirit of the Geeta by accepting the path of devotion (bhakti). Accordingly, the Geeta’s message cannot be properly understood by mental supposition . To this end, the sublime process illuminated within the Geeta must be accepted as given by the speaker Himself, Shri Krishna.
To understand Srimad Bhagavad Geeta one must enter into the spirit of the Geeta by accepting the path of devotion (bhakti). Accordingly, the Geeta’s message cannot be properly understood by mental supposition . To this end, the sublime process illuminated within the Geeta must be accepted as given by the speaker Himself, Shri Krishna.
Friday, 5 June 2015
Shri Geeta Ji click and read this.........
कल्याण की इच्छा
वाले मनुष्यों को
उचित है कि
मोह का त्याग
कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों
को अर्थ और
भाव के साथ
श्रीगीताजी का अध्ययन
कराएँ।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
It is appropriate
to abandon fascination for human beings desiring welfare and teach excessively their children Srigeetaji with
devoting and meaning.
Following God’s Command by The reading
and pondering it oneself, be able to achieve the rarely achieved human body it’s
not fair to waste a moment of one’s precious time in sorrow and fleeting
pleasures.
Thursday, 4 June 2015
Geeta Bhab
कल्याण की इच्छा
वाले मनुष्यों को
उचित है कि
मोह का त्याग
कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों
को अर्थ और
भाव के साथ
श्रीगीताजी का अध्ययन
कराएँ।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।
It is appropriate
to abandon fascination for human beings desiring welfare and teach excessively their children Srigeetaji with
devoting and meaning.
Following God’s Command by The reading
and pondering it oneself, be able to achieve the rarely achieved human body it’s
not fair to waste a moment of one’s precious time in sorrow and fleeting
pleasures.
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